غزل
جو دیکھنا ہو آپ کو منظر شباب کا
آنکھوں سے میری دیکھیے چہرہ جناب کا
کیا بار بار اس کے ہی بارے میں سوچنا
کیا حال پوچھنا کسی خانہ خراب کا
وہ جس پہ نام آپ کا میں نے لکھا نہ ہو
ایسا ورق نہیں کوئی دل کی کتاب کا
آنکھوں سے میری دیکھیے چہرہ جناب کا
کیا بار بار اس کے ہی بارے میں سوچنا
کیا حال پوچھنا کسی خانہ خراب کا
وہ جس پہ نام آپ کا میں نے لکھا نہ ہو
ایسا ورق نہیں کوئی دل کی کتاب کا
عزیز رفیع فرحت بدایونی
ग़ज़ल
जो देखना हो आप को मंज़र शबाब का
आँखों से मेरी देखिये चेहरा जनाब का
क्या बार बार उसके ही बारे में सोचना
क्या हाल पूछना किसी ख़ानः ख़राब का
वह जिसपे नाम आप का मैंने लिखा न हो
ऐसा वरक़ नहीं कोई दिल की किताब का
आँखों से मेरी देखिये चेहरा जनाब का
क्या बार बार उसके ही बारे में सोचना
क्या हाल पूछना किसी ख़ानः ख़राब का
वह जिसपे नाम आप का मैंने लिखा न हो
ऐसा वरक़ नहीं कोई दिल की किताब का
फ़रहत बदायूनी
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